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आँख वो जब जागी तो आबे हवा बन गई, उसने जब दे

आँख      

वो जब जागी तो आबे हवा बन गई,
उसने जब देखा तो फ़िज़ा जवाँ बन गई,
किस्सा होता है हर किसी का जुदा-जुदा,
नज़र से जुड़ी तो किस्सा-ए-बयाँ बन गई |

उठ जाती है गुस्से में लाल होकर कभी-कभी,
प्यार से पिघली तो मरीज़-ए-दवा बन गई,
तकल्लुफ़ करके ही देखना तुम मेरे ऐ दोस्त,
बंद पलकें हुईं तो दिल की दुआ बन गई |

शर्मा के देखा जो उसने मेरी तरफ़ इस बार,
नज़र मिली तो हकीम का नुस्खा बन गई,  
दुआ भी कबूल हुई है बंद पलकों से,
और झूम गई जो तो लत और नशा बन गई |

संभाल कर देखना अब की बार मेरी ओर ज़रा,
मेरी नज़र फिसली तो मानो न जाने क्या बन गई,
इसलिए कहतें हैं कि वक़्त पर आँख खोला करो,
जो बेवफ़ा ना हुई तो ज़िन्दगी भर की वफ़ा बन गई |

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