*** नियती *** नियति तेरी क्रूरता झेल रही हूँ अपना अस्तित्व मैं संभाल रही हूँ तू चाहे कितनी भी कर ले कोशिश बिछा कितने ही कांटें तू मेरी राहों में छाले पड़े पैरों को मैं सहला रही हूँ हर कदम तू चाहती है मुझे डिगाना मुझे भी आता है शूल के घावों को छिपाना हर दर्द सहकर भी मैं मुस्कुरा रही हूँ अपनों से ही ह्रदय -विदारक घाव मिले हैं पग -पग पर अनैतिकता के दाँव मिले हैं अच्छाइयों का मूल्य मैं चुका रही हूँ सपनोंको जीना सीख लिया है जीवन के दंश सहना सीख लिया है कर्म से अपने,मैं अपना भाग्य लिख रही हूँ *** नियती *** नियति तेरी क्रूरता झेल रही हूँ अपना अस्तित्व मैं संभाल रही हूँ तू चाहे कितनी भी कर ले कोशिश बिछा कितने ही कांटें तू मेरी राहों में छाले पड़े पैरों को मैं सहला रही हूँ