वोट हुं मैं फूल सी बवंडर हुं मैं धूल सी; कभी किसी पार्टी का कमल बन खिल जाती हुं; कभी किसी हाथी का श्रिंगार बन मदमस्त झुमती हुं मैं; किसी हाथ से फिर मुझे तोड़ दिया जाता है ; जब सिकुड़ जाती हुं सूख कर तब आपका झाड़ू भूल करता है मुझे कचरा समझने की ; फिर कोई किसान हल लेकर बीजता है मुझे अपने खेतों में और मैं फिर से फूल बन कमल सी खिल जाती हुं! वोट की कीमत!