Nojoto: Largest Storytelling Platform

दबा सा छितरा पड़ा था वो, सुबह सिक्के जितना बड़ा था ।

दबा सा छितरा पड़ा था वो,
सुबह सिक्के जितना बड़ा था ।
दुपहर होते हर कोने तक पहुंचा ।
फैलता रहा शाम ढलते ढलते,
फिर रात से पहले धूमिल हो गया ।
कुछ नया न सूझा था सुबह से, सोचा
आँगन की धूप का ही हालचाल दे दूँ ।
उसी का साथ कायम है कब से ।। माफ़ी चाहूंगा, कुछ नया नहीं सूझा 

Click on #DhoopKeKisse for more musings on Sunlights

#धूप #Sunlight #CalmKaziWrites #YQBaba #YQDidi #आँगन #Courtyard
दबा सा छितरा पड़ा था वो,
सुबह सिक्के जितना बड़ा था ।
दुपहर होते हर कोने तक पहुंचा ।
फैलता रहा शाम ढलते ढलते,
फिर रात से पहले धूमिल हो गया ।
कुछ नया न सूझा था सुबह से, सोचा
आँगन की धूप का ही हालचाल दे दूँ ।
उसी का साथ कायम है कब से ।। माफ़ी चाहूंगा, कुछ नया नहीं सूझा 

Click on #DhoopKeKisse for more musings on Sunlights

#धूप #Sunlight #CalmKaziWrites #YQBaba #YQDidi #आँगन #Courtyard
calmkazi6439

CalmKazi

New Creator