दबा सा छितरा पड़ा था वो, सुबह सिक्के जितना बड़ा था । दुपहर होते हर कोने तक पहुंचा । फैलता रहा शाम ढलते ढलते, फिर रात से पहले धूमिल हो गया । कुछ नया न सूझा था सुबह से, सोचा आँगन की धूप का ही हालचाल दे दूँ । उसी का साथ कायम है कब से ।। माफ़ी चाहूंगा, कुछ नया नहीं सूझा Click on #DhoopKeKisse for more musings on Sunlights #धूप #Sunlight #CalmKaziWrites #YQBaba #YQDidi #आँगन #Courtyard