उस दिन उस समय उस घड़ी तकती रही मैं उसको एकटक जैसे भर लेना चाहती थी उसकी छवि को अपनी आँखों के कसोरों में जैसे भर जाता है बारिश का पानी सूखी धरा में... समा लेना चाहती थी उसके अस्तित्व को अपने वजूद में ताकि न हो सकें फिर कभी पृथक हम जैसे समा लेता है वृक्ष का सूखा तना बरसते पानी को अपने में फैला देता है अपने पूरे शरीर में.... मैं भी चाहती थी कुछ ऐसा ही पर... मैं बस.. चाहती ही रही.... 🌹 #mनिर्झरा उस दिन उस समय उस घड़ी तकती रही मैं उसको एकटक जैसे भर लेना चाहती थी उसकी छवि को अपनी आँखों के कसोरों में