खड़ा हिमालय अविचल अडिग , विध्वंसक पवन को ललकारे , पवन तेजमयी , अद्भुत गतिवान , करती चीत्कारे । मैं रक्षक वसुंधरा का , तुझको अब मुड़ना होगा , पार जाने , धरा पाने ,मुझसे लड़ना होगा पवन अचंभित , किंचित पुलकित , ललकार हिमालय की न लघु न विशेष है , पार पाने लड़ना होगा , वेग बल यद्द्यपि जो शेष है । #हिमालय