" ज़िन्दगी बस इस बसर में , कि तेरा ख्याल किस कदर है , चलो आईने से तपसिल कर ली जाये , तुम मुझे कहीं मेरी नज़र से निहार तो नहीं रहे , जिक्र है कि ख्याल है तुम हो भी कि नहीं , तुम मुझे मिल के नहीं मिल रहे , जन्द सांसों का चलो हिसाब कर लिया जाये , अब से तु मुझमें जिये मैं तुझ में ." --- रबिन्द्र राम " ज़िन्दगी बस इस बसर में , कि तेरा ख्याल किस कदर है , चलो आईने से तपसिल कर ली जाये , तुम मुझे कहीं मेरी नज़र से निहार तो नहीं रहे , जिक्र है कि ख्याल है तुम हो भी कि नहीं , तुम मुझे मिल के नहीं मिल रहे , जन्द सांसों का चलो हिसाब कर लिया जाये , अब से तु मुझमें जिये मैं तुझ में ."