हुस्न नही इन्हें सीरत का नक़ाब समझिए इनपर मरने वाले इसे ख़ुदा का अज़ाब समझिए क्यों इसे सूरत-ए-हक़ीक़त कहते है लोग इसे टूट जाने वाला ख्वाब समझिए हुस्न फिदाई को नफ़ा मत कहिये जनाब इसे घाटे का हिसाब समझिए जिसकी लिखाई में कोई इल्म नही मिलता उस किताब को बुरी किताब समझिए जल से भरा हर कोई सागर नही होता कुछ ओछो को तो अब तालाब समझिए तालाब!