पत्थर बन रहा इन्सान।... पत्थर हो गये जज्बात सारे, पत्थर बन रहा इन्सान। मजाक बनाते है मौत का, क्यू जोकर बन रहा इन्सान। वो जो आयी है आंधी, बेखौप बरसायेगी कहर। उलझ रहा है मौत से, क्यू नादान बन रहा इन्सान। कितने मुल्क तबाह हो गए, कितनों के निशां मिट गए। महफूज समझकर खुद को, क्यू गलती कर रहा इन्सान। अभी तुमने लाशे देखी नही, डरे हूए समशान देखे नही। जिनके लिए जिया आजतक, उन जिंदगीयोंसे खेल रहा इन्सान। अभी सुधर जाओ , के थोडा वक्त बाकी है। के मौत के उस दरीया मे, क्यू डुब रहा इन्सान। कवीराज (हणमंत यादव) ९०२१०३४९१७. कोरोनावायरस पे चेतावनी Ritika suryavanshi