लौट आना तुम , जैसे लौटतें है परिंदे शाम को अपने घोंसले में । लौट आना इस तरह, जैसे पूरवैय्या हवा लौटती है सावन में । लौट आना तुम, जैसे लौटता है मानसून हर बरस । लौट आना तुम, टेसुओं के फूल की तरह फागुन में । लौट आना तुम जैसे पंखुड़ियां लौटती हैं गुलाब में । लौट आना तुम वैसे जैसे झड़े पत्ते फिर सावन में लौट आते हैं पेड़ों पर । लौट आना तुम, आम के डाली पर कूहूकते कोयल की तरह । लौट आना तुम, जैसे लौटता है हर रोज सूरज । लौट आना तुम, जैसे हर रात चांद लौटता है आसमां में लौट आना तुम, जैसे सुबह लौटती है रात के बाद । लौट आना तुम जैसे हर दुख के बाद सुख लौटता है। लौट आना तुम वैसे जैसे हर विरह के बाद मिलन लौटती है । लौट आना तुम वैसे जैसे लौटना हो तुम्हें सिर्फ लौटने के लिए । ©किशोर #लौट आना तुम