शहर से गाँव ही अच्छा था, वो पेड़ो की छाव ही अच्छा था, शहर मुझकों खाता गया, बेरंग सा जीवन बनाता गया, गाँव के हवा में खुशबु थी, वो भात की लात की आदत थी, सफर का साथी भी इमान पे चलता था, शहर में ये इमान ही बिकता है, शहर में खञ्जर घोपे गये, सफर के लोग मिटते गये, लोग यहाँ बिकते गये, ये शहर मुझको खाता है, वो गाँव ही मुझको भाता है। #बदलते #हालात, #बदलते #लोग