"ज़िन्दगी में 'आने' की, 'मर्ज़ी' तो पूछते हैं लोग, ज़िन्दगी से 'जाने' की, 'अर्जी' क्यों नहीं लगाते ! ख़ूबी से बेदखल कर रहे हैं मेरे 'अपने' ही लोग, 'नज़रअंदाज़ी-मौसम' बना रहे 'अपने' ही लोग, 'वादों' को 'निभाने' की, 'मर्ज़ी' तो पूछते हैं लोग, 'वादों' से 'मुकरने' की, 'अर्जी' क्यों नहीं लगाते ! 'एहसास' के ढ़ेर में, 'ख़ुद' को ढूँढ नहीं पाते लोग, 'गलती' के 'फिर' में, 'वजह' को ढूँढ नहीं पाते लोग, 'हम' में 'साथ' रहने की, 'मर्ज़ी' तो पूछते हैं लोग, 'हम' से 'अलग' होने की, 'अर्जी' क्यों नहीं लगाते ! ज़िन्दगी में 'आने' की, 'मर्ज़ी' तो पूछते हैं लोग, ज़िन्दगी से 'जाने' की, 'अर्जी' क्यों नहीं लगाते !" #yqbaba #yqdidi #hindipoetry #love #sangeetapatidar #मर्ज़ी