|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9
|| श्री हरि: ||
2 - शरण या कृपा?
'मेरा लडका शरण चाहता है महाराणा।' गोस्वामी श्रीगोविन्दरायजी के नेत्र भर आये थे। उनका स्वागत- सत्कार हुआ था, उनके प्रति सम्मान अर्पित करनेमें महाराणाने कोई संकोच नहीं किया था, किंतु गोस्वामीजी को तो यह स्वागत-सम्मान नहीं चाहिय। उनके ह्रदय में जो दारुण वेदना है उसे शान्त करनेवाला आश्वासन चाहिय उन्हे। 'आज़ एक वर्षसे अधिक हो गया मेरे पुत्रको भटकते। यवन सत्ताधारी चमत्कार देखना चाहता है। चमत्कार कहाँ धरा है मेरे पास और मेरा नन्हा सुकुमार लाल चमत्कार क्या जाने। यवनों के भय से जोधपुर, जयपुर - कोई उसे स्थायी आश्रय नहीं देना चाहता। मैं अपने पुत्र के लिये आपसे शरण माँगने आया हूँ महाराणा।'
उदयपुर के महाराणा राजसिंह कुछ कहें, इससे पूर्व ही महामंत्री उठ खडे़ हुए - 'गोस्वामीजी। आप जानते ही हैं कि दाराशिकोह का पक्ष लेने के कारण औरंगजेब उदयपुरसे चिढ़ गया है। फतेहाबाद की पराजय चाहे जिसके दोष से हुई हो, उसने हमारे वीरों की एक बड़ी संख्या से हमें हीन कर दिया है।'