ढाई आखर का शब्द और उसके लिए खपाना होता हैं जिंदगी... कभी कभी करना पड़ता है खुद को बदनाम और कभी गुमनामी को ढोना होता है अपने सीने पर लाद कर शायद सभी को नसीब नहीं यह ढाई आखर का शब्द तभी तो... कुछ रहते हैं प्यासे सदियों तक... बैठकर नदी के किनारे क्योंकि कभी हिम्मत न हुई कहने की नदी से कि इश्क़ है तुमसे कभी कहा नहीं धार से कि बहना चाहता हूँ तुम्हारे पास तुम्हारे अंतिम छोर तक कभी कहा नहीं उन लहरों से कि मुझे भी... साथ उठना है, साथ गिरना है... उठकर गिरकर तुमसे, तुझमें... बहना है तुझमें, तुमसे... बस थाम लो मुझे नदी... ओ धार... हे लहरें! मुझे बहना है, और केवल बहना है तुम्हारे साथ अंतिम छोर तक ©उज्ज्वल सिंह #GoldenHour #ढाईअक्षरप्रेमके #ढ़ाई_आखर_प्रेम_का