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घर आंगन में हँसते, खाते बुजुर्गों की आवाजें,

 घर  आंगन  में  हँसते,  खाते  बुजुर्गों की आवाजें,
घर के बच्चों की, ज़हीन शक्सियत बयां करती है l

मेहनत   किया   करो   इसे  काबू  में  रखने  की,
बनाएगी या बिगड़ेगी, तय आपकी जबां करती है

बीस  हज़ार  मजदूरों  के, कटे  हाथों की दास्तान,
खूबसूरत ताजमहल की, बदसूरती बयां करती है l

हँसता   हुआ   चेहरा   दे   सकता   है   धोखा   मगर,
ज़बान की कड़वाहट, मन की नाराजगी बयां करती है

धंसी आँखें, फटे जूते और मैली बनियान मज़दूर की,
दो  वक्त  रोटी  जुटाने  की जद्दोजहद बयां करती है l

घर बार छोड़कर जो बाहर कमाने निकल जाते है,
उनके दिल का हाल, उनकी आँखें बयां करती है ll
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April 2024

©Dimple Kumar
  #Apocalypse