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एक शहर का गणेशोत्सव

एक शहर का गणेशोत्सव 
                                 ---------------------------
"एक शहर की बात है। शहर में गणेशोत्सव बड़े धूम से मनाया जाता है। प्रथा कुछ ऐसी चल गयी है कि हर जाति के लोग अपने अलग गणेश जी रखते है। इस तरह ब्राम्हणों के अलग गणेश होते है, अग्रवालों के अलग, तेलियों के अलग, कुम्हारों के अलग। पचीस-तीस तरह के गणेशोत्सव होते है, और नौ-दस दिनों तक खूब भजन-कीर्तन, पूजा-स्तुति, आरती, गायन-वादन होते हैं।
आखिरी दिन गणेश विसर्जन के लिए जो जुलुस निकलता है, उसमे सबसे आगे ब्राम्हणों के गणेश जी होते हैं। "
"इस साल ब्राम्हणों के गणेश जी का रथ उठने में जरा देर हो गयी। इसलिए तेलियों के गणेश जी आगे हो गए। जब यह बात ब्राम्हणों को मालूम हुई, तो वे बड़े क्रोधित हुए।
बोले, “ तेलियों के गणेश की ऐसी-तैसी। हमारा गणेश आगे जायेगा।”
           
                         -हरिशंकर परसाई जी कहिन
एक शहर का गणेशोत्सव 
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"एक शहर की बात है। शहर में गणेशोत्सव बड़े धूम से मनाया जाता है। प्रथा कुछ ऐसी चल गयी है कि हर जाति के लोग अपने अलग गणेश जी रखते है। इस तरह ब्राम्हणों के अलग गणेश होते है, अग्रवालों के अलग, तेलियों के अलग, कुम्हारों के अलग। पचीस-तीस तरह के गणेशोत्सव होते है, और नौ-दस दिनों तक खूब भजन-कीर्तन, पूजा-स्तुति, आरती, गायन-वादन होते हैं।
आखिरी दिन गणेश विसर्जन के लिए जो जुलुस निकलता है, उसमे सबसे आगे ब्राम्हणों के गणेश जी होते हैं। "
"इस साल ब्राम्हणों के गणेश जी का रथ उठने में जरा देर हो गयी। इसलिए तेलियों के गणेश जी आगे हो गए। जब यह बात ब्राम्हणों को मालूम हुई, तो वे बड़े क्रोधित हुए।
बोले, “ तेलियों के गणेश की ऐसी-तैसी। हमारा गणेश आगे जायेगा।”
           
                         -हरिशंकर परसाई जी कहिन