।।श्री हरिः।।
18 - वर्षा में
श्याम को जल से सहज प्रेम है और वर्षा हो रही हो, तब तो पूछना ही क्या? सभी बालक प्राय: वर्षा में भीगकर स्नान करने के व्यसनी होते हैं। कन्हाई को कोई रोकनेवाला न हो तो यह तो शरत्कालिन वर्षा में भी भीग-भीगकर स्नान करता, उछलता-कूदता फिरे। यह तो पावस की वर्षा है। इसमें तो पशु भी नीचे छिपने नहीं जाते। उन्हें भी भीगने में आनन्द आता है।
प्रातःकाल बालक गोचारण के लिए चलते थे, तब आकाश में थोड़े ही मेघ थे; किन्तु पावस में घटा घिरते देर कितनी लगती है। आकाश प्रथम प्रहर बीतते ही मेघों से ढक गया। गगन की गर्जना के साथ वन केकारव से गूँजने लगा। पशु आजकल हरित मृदुल घास चरकर शीघ्र तृप्त हो जाते हैं। गायें भी वर्षा आगमन अनुमान करके प्रसन्न हो गयीं।
घटायें घिरी और बालकों ने अपने पटुके पहिन लिये। सबने अपनी कछनियाँ उतारकर गिरिराज गोवर्धन की एक गुफा में एक साथ ढेर कर दीं।