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दंश (In Caption) Part 1 Ch- 1 बसंत की वह सुबह बड़ी

दंश
(In Caption)
Part 1 Ch- 1 बसंत की वह सुबह बड़ी अच्छी थी,
धीमी धीमी हवाएं और वह नीम की डालीयों के बीच से झांकता, लाल सा सूरज; नीले आसमान पर वह किसी सुंदरी के माथे पर लगी बड़ी सी बिंदी सा  प्रतीत हो रहा था। 
पास झुरमुट में बैठी चिड़ियों ने अपना राग छेड़ रखा था।
पर शायद वो गीत नहीं था, ऐसा प्रतीत होता था जैसे झगड़ रहीं थीं, शायद नाराज़ थीं किसी बात पर।

इतने में कमरे के बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई, पर कोई जवाब नहीं दिया गया, दस्तक एक बार फिर हुई, पर इस बार थोड़ी तेज़; लेकिन जवाब इस  बार भी नहीं आया था।

"पापा कितनी बार कहा है
दंश
(In Caption)
Part 1 Ch- 1 बसंत की वह सुबह बड़ी अच्छी थी,
धीमी धीमी हवाएं और वह नीम की डालीयों के बीच से झांकता, लाल सा सूरज; नीले आसमान पर वह किसी सुंदरी के माथे पर लगी बड़ी सी बिंदी सा  प्रतीत हो रहा था। 
पास झुरमुट में बैठी चिड़ियों ने अपना राग छेड़ रखा था।
पर शायद वो गीत नहीं था, ऐसा प्रतीत होता था जैसे झगड़ रहीं थीं, शायद नाराज़ थीं किसी बात पर।

इतने में कमरे के बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई, पर कोई जवाब नहीं दिया गया, दस्तक एक बार फिर हुई, पर इस बार थोड़ी तेज़; लेकिन जवाब इस  बार भी नहीं आया था।

"पापा कितनी बार कहा है
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