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पेड़ लगाया जिसने, उसने छाया उसकी न देखी। फल तो दूर,

पेड़ लगाया जिसने, उसने छाया उसकी न देखी।
फल तो दूर, दूर की कौड़ी, काया उसकी न देखी।

थर-थर हाँथ कांपते उसके, मस्तक पर चिंतातुर रेखी।
जरा-मरा बूढ़ा वह जीभर, मिटा सका न प्रभु की लेखी।
                           ✍️शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR
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