सुख के दीये मे से.. संतोष का तेल खत्म हो गया.. उम्र की बाती ने.. आत्मा का सारा रक्त.. निचोड़कर जला दिया.. समृद्धि के आँचल से लिपट कर.. एक कष्टों का शूल चुभ गया.. और,,बरसों से छिपी उसकी लाज को.. निर्दयता से पल भर में नग्न कर गया.. खुशियाँ बाँहें फैलाये खड़ी रहीं भोर से.. इश्क़ का सूरज.. अफसोस की साँझ में छिप गया.. और,,काली अमावस मे आकर चकोर.. प्रतीक्षा के वृक्ष पर बैठ एकांत में.. अपने प्रिय चंदा की राह.. कातर नैनों से प्रतिपल तकता रहा.. #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #ग्लानि सुख के दीये मे से.. संतोष का तेल खत्म हो गया.. उम्र की बाती ने.. आत्मा का सारा रक्त..