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तुझे हक़ है जो मेरे दिल के क़रीब है। बख़्शी जो तून

तुझे हक़ है जो मेरे दिल के क़रीब है।
बख़्शी जो तूने वो ग़म मेरा नसीब है।

मुंह फेरने वालो को सभी भुला देतें है।
जहां की ये आदत भी बहुत अजीब है।

वो  ख़ुद से नहीं  जहां से हार बैठा है।
साहेब ! बंदा अच्छा है मगर ग़रीब है।

मेरे गांव में सबा-ए-तमीज बहा करती है।
बहनों के सर पर  दुपट्टा नहीं तहज़ीब है।

ख़ुद अपनी मोहब्बत बदनाम कैसे करूं?
जानता हूं, उनके और भी कई रक़ीब है।

तमाम दुश्वारियां सीने में छुपा मुस्कुराता है।
रंज-ओ-ग़म ही जय के दिलकश हबीब है।
मृत्युंजय विश्वकर्मा ग़ज़ल #gazal  #bestshayari #mjaivishwa 
#Love
तुझे हक़ है जो मेरे दिल के क़रीब है।
बख़्शी जो तूने वो ग़म मेरा नसीब है।

मुंह फेरने वालो को सभी भुला देतें है।
जहां की ये आदत भी बहुत अजीब है।

वो  ख़ुद से नहीं  जहां से हार बैठा है।
साहेब ! बंदा अच्छा है मगर ग़रीब है।

मेरे गांव में सबा-ए-तमीज बहा करती है।
बहनों के सर पर  दुपट्टा नहीं तहज़ीब है।

ख़ुद अपनी मोहब्बत बदनाम कैसे करूं?
जानता हूं, उनके और भी कई रक़ीब है।

तमाम दुश्वारियां सीने में छुपा मुस्कुराता है।
रंज-ओ-ग़म ही जय के दिलकश हबीब है।
मृत्युंजय विश्वकर्मा ग़ज़ल #gazal  #bestshayari #mjaivishwa 
#Love