जब-जब डुबाया हाथ नदी की धार में चंचल मन की बँधी उमंगें करने लगी हलचल कटने लगे किनारें बहने लगा अंतर डूबने लगा अनहद मन भी अतल तल तक जल और समय की धारा प्रवहमान निरंतर न जाने घोर विप्लव बहा ले जाए कहाँ पर? ये मन की उर्वरा भी विकसेगी वहीं पर! चंचल हवा सलोनी नदी दीवाना कोई बादल! हँस देंगे रोशनी संग जी जाएगा जीवन... शंका के सर्प दर्प सिंह, घाती बाज़ होंगे पर किलके जो फूल तितली मुस्कायेगी वहीं पर। माना ये ठाँव भी है क़ातिलों का वही शहर क़ाहिर मौत के डर से जीना छोड़ दें क्योंकर? अपनी तो साँझ सी है ये डूबती हुई नज़र, होने दो रात चाँद सी खिल जाए न अगर! टूटे हुए ख़्वाबों की कश्ती है ये मगर लहरों की शोखियों का इसपे रहा असर तुम धार आज़माओ ये पार जाएगी ज़रूर! जीने को ज़िन्दगी है दोस्त करना नहीं ग़ुरूर। #toyou#tome#tolife#yqlife#yqlivingon#yqmotivation#inspiringin