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गुज़री नहीं है, जवानी अभी। मौके इशरत, हेम तमाम हों

गुज़री नहीं है, जवानी अभी।
मौके इशरत, हेम तमाम होंगे।।

एक बेवफा के लिए रोना कैसा।
आगे उलफत के, बड़े इंतजाम होंगे।

इन घटाओं का, कोई भी शाहिल नहीं है।
ये हवाओं का नगर, बंजर हाशिल नहीं है ।।

खुलेंगे कहीं इश़्क, बादलों में जाके।
किसी की घनी जुल्फों की छांव में।

अरमान हैं हमनशी, हमसफर नाम होंगे।
किसी की निगाहों के राज़, एहतराम होंगे।।

बस्तियां हज़ार, भरी लाखों मदहोशियां।
चंचलता से नहाए हुश्न, कितनी सरगोशियां।।

कुछ जाने तो कुछ, अंजाने में ही बदनाम होंगे ।
किसी से मोहब्बत, फ़ना होने वाले कलाम होंगे।।

©Hem Raj Yadav
  गुज़री नहीं है जवानी अभी....
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