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महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बे

महँगाई की मार (दोहे)

महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल।
खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये सुर ताल।।

बीच वर्ग के हैं पिसे, देख हुए नाकाम।
अब सोचें वह क्या करें, बढ़ा सकें कुछ काम।।

फिर भी हैं कुछ घुट रहे, मिला न जिनको काम।
महँगाई के दर्द में, जीना हुआ हराम।।

चिंतित सब परिवार हैं, दें किसको अब दोष।
महँगाई ऐसी बढ़ी, थमें नहीं अब रोष।।

विद्यालय व्यवसाय हैं, दिखते हैं सब ओर।
शुल्क मांँगते हैं बहुत, पाप करें ये घोर।।

मुश्किल से शिक्षा मिले, कहते सभी सुजान।
महँगाई की मार है, यही बड़ा व्यवधान।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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महँगाई की मार (दोहे)

महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल।
खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये सुर ताल।।

बीच वर्ग के हैं पिसे, देख हुए नाकाम।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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