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विधाता का कैसा ये खेल हो गया अपना ही गाँव घर जेल ह

विधाता का कैसा ये खेल हो गया
अपना ही गाँव घर जेल हो गया।।

घर में ही खाना है, घर में नहाना
कैदी सा जीवन,कहीं भी न जाना।।

जेलर बना है,ये घातक "कोरोना"
दु:ख तो यही है, इसी का है रोना।।

सब कोई पुछे कि, क्या तेरा हाल है
कैसे बताऊं कि जिना मुहाल है।।

रह-रह ख्याल एक आता है मन में
कब तक यूं जिंदा, रहेंगे भवन में।।

ये ईश्वर का कैसा, ये खेल हो गया
अपना ही गाँव घर जेल हो गया।।
-- Amit premshanker #Amitpremshanker #अमितप्रेमशंकर
#poem#on#corona
विधाता का कैसा ये खेल हो गया
अपना ही गाँव घर जेल हो गया।।

घर में ही खाना है, घर में नहाना
कैदी सा जीवन,कहीं भी न जाना।।

जेलर बना है,ये घातक "कोरोना"
दु:ख तो यही है, इसी का है रोना।।

सब कोई पुछे कि, क्या तेरा हाल है
कैसे बताऊं कि जिना मुहाल है।।

रह-रह ख्याल एक आता है मन में
कब तक यूं जिंदा, रहेंगे भवन में।।

ये ईश्वर का कैसा, ये खेल हो गया
अपना ही गाँव घर जेल हो गया।।
-- Amit premshanker #Amitpremshanker #अमितप्रेमशंकर
#poem#on#corona