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अब थक चुकी हूं बेमतलब के रिश्तों का बोझ उठा कर चलत

अब थक चुकी हूं बेमतलब के रिश्तों का बोझ उठा कर चलते चलते जिंदगी मायूस सी लगने लगी हैं। निभा कर देख लिया सभी की जिम्मेदारी को अब कहते है हम जिम्मेदार हों गए हैं अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाने को अब तुम तुम्हारा देख ले हमनें सोचा मन में सवाल यह उठा की हम कोन हम तो पेड़ से पतझड़ कब बन गए पता ही न चला। कोई आया चाहें इस्तेमाल किया गया।

©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
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