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बातें जो रातभर की साथी हैं, अभी चुप हैं, जो राहें

बातें जो रातभर की साथी हैं, अभी चुप हैं,
जो राहें जुगनूओं का इश्क़ हैं, अभी घुप्प हैं।

प्रकृति भी खफ़ा जैसे ख़िज़ाँ दे रही जब बहार है,
तन्हाई साथ मेरे जैसे अब प्यारे रिश्ते मे दरार है।

किस्मत की करवटें शायद दिखी नही मुझे,
रिश्तों की सिलवटें शायद संभली नही मुझसे।

तेरा वहम है कि कल मेरी महफिल कहीं रंगीन रही,
पिछली रात तुझे याद कर करके मै ख़ूब गमगीन रही।

ये दरारें, मुझे तोड़ रही हैं, तुम लौट आओ ज़िन्दगी मुझसे मुँह मोड़ रही हैं। 🎀 Challenge-228 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है।

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है।

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 9 पंक्तियों में अपनी रचना लिखिए।
बातें जो रातभर की साथी हैं, अभी चुप हैं,
जो राहें जुगनूओं का इश्क़ हैं, अभी घुप्प हैं।

प्रकृति भी खफ़ा जैसे ख़िज़ाँ दे रही जब बहार है,
तन्हाई साथ मेरे जैसे अब प्यारे रिश्ते मे दरार है।

किस्मत की करवटें शायद दिखी नही मुझे,
रिश्तों की सिलवटें शायद संभली नही मुझसे।

तेरा वहम है कि कल मेरी महफिल कहीं रंगीन रही,
पिछली रात तुझे याद कर करके मै ख़ूब गमगीन रही।

ये दरारें, मुझे तोड़ रही हैं, तुम लौट आओ ज़िन्दगी मुझसे मुँह मोड़ रही हैं। 🎀 Challenge-228 #collabwithकोराकाग़ज़

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