आख़िर कब तक, जिंदा रहूंगा में, तेरी तलाश में, मेरी सब्र का बांध भी, टूट रहा है तेरी आश मे। कितना वक़्त बीत गया, हमारी आखिरी मुलाकात का, तू तो शायद आगे बढ़ गई, लेकिन मे तो उसी लम्हे में ही, जी रहा हूँ आज तन्हा बनकर। बेसब्री से इंतज़ार है मुझे उस लम्हे का, जिस लम्हे में हवा का रुख बदलेगा, फ़िजा मे भी चमन खिलेगा, और तेरे दिल में मेरी यादों के गुल खिलेंगे, तब ना चाहकर भी तेरे कदम मेरी ओर बढ़ेंगे। ना ले वक़्त और इम्तिहान मेरा, पहुंचाके पैग़ाम मेरे दिल का उसे, एक बार फिर से मुलाकात करवा दे इत्तफ़ाक से, उम्र का कुछ भरोसा नहीं के, कब किस की डोर जिंदगी से कट जाए। -Nitesh Prajapati ♥️ Challenge-971 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।