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“मुझे पता न चला” हम मिले बेशक दो अजनबियों की तरह

“मुझे पता न चला”

हम मिले बेशक दो अजनबियों की तरह थे,
मगर तुम दिल में कब आ बसे मुझे पता न चला!
अपनी आँखों में राखी थी मेने इज्जत तुम्हारे लिए,
इसमें प्यार कब उमड़ आया मुझे पता न चला!
यूँ तो शराफत और सादगी लुभाती थी मुझको,
तेरी शरारतों पर कब फिसल गया पता न चला!
खुली जुल्फों से आती थी जो तुम्हारी भीनी-भीनी खुशबु,
जाने कब खामोश जंगल सी हुई मुझे पता न चला!
अधरों पर चमकती थी जो सूरज की लालिमा,
वो मदहोश लैब बेसुध क्यों हुए मुझे पता न चला!
वजह चाहे जो हो तेरे इस घुट-घुट के जीने की,
मेरे जीने की वजह अब तुम हो शायद तुम्हें पता न चला!!

©DIPRAJ #dipraj
“मुझे पता न चला”

हम मिले बेशक दो अजनबियों की तरह थे,
मगर तुम दिल में कब आ बसे मुझे पता न चला!
अपनी आँखों में राखी थी मेने इज्जत तुम्हारे लिए,
इसमें प्यार कब उमड़ आया मुझे पता न चला!
यूँ तो शराफत और सादगी लुभाती थी मुझको,
तेरी शरारतों पर कब फिसल गया पता न चला!
खुली जुल्फों से आती थी जो तुम्हारी भीनी-भीनी खुशबु,
जाने कब खामोश जंगल सी हुई मुझे पता न चला!
अधरों पर चमकती थी जो सूरज की लालिमा,
वो मदहोश लैब बेसुध क्यों हुए मुझे पता न चला!
वजह चाहे जो हो तेरे इस घुट-घुट के जीने की,
मेरे जीने की वजह अब तुम हो शायद तुम्हें पता न चला!!

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