सौभाग्य क्या छीना मुझसे रंग छिन गया श्रृंगार छिन गया नाम छिन गया संसार छिन गया हो गई मैं अब अपशगुनी, नाम दे दिया विधवा दे दिया सफेद रंग जो अब ना रही मैं सधवा छीन गया हक मुझसे रंगों में रंग जाने का भर के मांग में सिंदूर सुहागन कहलाने का शुभ काम में जा नहीं सकती अच्छा खाना खा नहीं सकती पैर में रंग लगा नहीं सकती हाथ में मेहंदी रचा नहीं सकती शेष भाग अनुशीर्षक में 👇- #paidstory मांग में कुमकुम नहीं न बिंदी मैं लगाती हूं आंखों के काजल को अब आंसू से मिटाती हूं दुनिया के नजरों में अब बेचारी बन गई दया की पात्र और दर्द की भागीदारी बन गई।। जो दिख गई सुबह तो खरी खोटी मुझे सुनाते हैं