"तरंगें" उसने पूछा, "कैसे तुम अफसाने गढ़ लेते हो ? जो मैं कहती भी नहीं पढ़ लेते हो ।" मैं मुस्कुराया, "कुछ एहसास शब्दों की दीवारें भी लांघ आते हैं । कुछ तरंगें तो उठती ही होंगीं जो महसूस कर पाते हैं ।"