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ओस की बूंद कितनी बावली होती है बिखरने तक खुद को सम

ओस की बूंद कितनी बावली होती है
बिखरने तक खुद को समझती मोती है
सूरज आने से पहले कितना अकड़ती है
थोड़ा सा ताप बढ़ते ही अस्तित्व खोती है

मानव तू ओस की बूंद न बन
तू तपा स्वर्ण सम ये जीवन
खुशियों में नाचे बन मयूर
गम में तप कर तू बन कुंदन

©Minesh chauhan #ओसं_की_बूँद 

#droplets
ओस की बूंद कितनी बावली होती है
बिखरने तक खुद को समझती मोती है
सूरज आने से पहले कितना अकड़ती है
थोड़ा सा ताप बढ़ते ही अस्तित्व खोती है

मानव तू ओस की बूंद न बन
तू तपा स्वर्ण सम ये जीवन
खुशियों में नाचे बन मयूर
गम में तप कर तू बन कुंदन

©Minesh chauhan #ओसं_की_बूँद 

#droplets