इश्क़ का दरिया ये माना की जहर है, जायका ऐ चाशनी लगता मगर है। इश्क़ में रुसवा हुए क्या रंज हमको, शायरी की महफिलों चर्चा ज़बर है। हो उमर का दौर कैसा भी समझ ले, इश्क़ पे मेरी बड़ी कातिल नजर है। आरजू जो भी हुई करते है पूरी, जो किया है इश्क़ में होता गदर है। देखते जो हो मुझे तुम उस नजर से, ना दिखे तो सोचते हो दिल किधर है। देखना गुस्ताख नज़रों से हमेशा, मान भी लो आप पर नज़रे कहर है। वो कबा ओढे हुए फिरता जहां में, भीड़ से बचना हुए पर बेअसर है। #जहर_ए_इश्क़_१