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सतलोक ऐसा अमर लोक है जहाँ एक हंस आत्मा के शरीर का

 सतलोक ऐसा अमर लोक है जहाँ एक हंस आत्मा के शरीर का तेज 16 सूर्यों के समान है लेकिन उसमें गर्मी नहीं है।संत गरीब दास जी की वाणी में वर्णन है कि सतलोक में कितना सुख है
मन तू चल रे सुख के सागर, जहाँ शब्द सिंधू रत्नागर।।
जहां संखो लहर महर की उपजे, कहर नहीं जहाँ कोई।
दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।
 सतलोक ऐसा अमर लोक है जहाँ एक हंस आत्मा के शरीर का तेज 16 सूर्यों के समान है लेकिन उसमें गर्मी नहीं है।संत गरीब दास जी की वाणी में वर्णन है कि सतलोक में कितना सुख है
मन तू चल रे सुख के सागर, जहाँ शब्द सिंधू रत्नागर।।
जहां संखो लहर महर की उपजे, कहर नहीं जहाँ कोई।
दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।