इन्सान : एक नमूना दुनिया के रंगमंच पर देखो आया इंसान रूपी नमूना, कहने को है सर्वशक्तिशाली पर खुद को ही बांटे बड़ा छोटा लम्बा और बौना। बताता हूँ इसके कुछ लक्षण सुनकर आएगा दोनों हँसना और रोना। कहता है मैं नभ तक हूँ पहुंचा मगर झांक ना पाया कभी खुद के दिल का ये कोना। पा गया है आज सारी ये सविधाएं फिर भी इसका मन ढूंढ रहा है खुशियाँ। कहने को सोता है मखमली पलंग पर मगर चैन की नींद बन गया अब एक सपना। मारता है अपनी ही बहू को मगर रोता है करते हुए अपनी बेटी का ही गौना। कहने को तो बड़ा समझदार दिखता है पर दूसरों का दर्द इसे हमेशा कम लगता है। ना देखा कभी इसने झांककर अपना गिरेबाँ पर अकारण ही पकड़े दूसरे का गिरेबाँ। लिए अपने मन मे एक दिन जिंदगी जीने की आस बन जाता है यूँ ही काल का ग्रास। और देखो रे जगत की विडम्बना कैसी आज खुद की मौत पर वो भी मुस्कुराया है। जीते जी जो घर वालों की आफत था मरने के बाद वो भी बड़ा नेक इंसान कहलाया है। इंसान: एक नमूना