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ना अपनो से गिला मुझको, ना गैरों से शिकायत है | ये

ना अपनो से गिला मुझको, ना गैरों से शिकायत है |
ये दुनिया है यहाँ हर शख्स को हर शख्स से देखो शिकायत है ||

जो फूलों की हिफाज़त में, खुदको कुर्बान करते हैं |
उन्हीं फूलों को देखिए, काटों से शिकायत है ||

हुस्न वालों ने दिल को तोड़ना,इक खेल समझा है |
मोहब्बत करके यूँ दिल तोड़ना, उनकी रिवायत है ||

लोग मिलते हैं, बड़े खुलूस से, हबीब बन-बन के |
गैर लगते हैं ना अपने, ये कैसी अदावत है ||

अर्श मेरी गज़ल को,मुझसा ही महसूस करता हो |
मेरे दिल में उस शख्स की, देखो अकीदत है ||

लेखक:-मनीष श्रीवास्तव (अर्श) 
गैरतगंज
मो.9009247220
खुलूस- सच्चा, जिसके मन में छल ना हो
अदावत-शत्रुता, अकीदत-सम्मान

©Manish Shrivastava
  #BakraEid