बेख़ुदी के मुहल्ले में फ़कीरी का काम रखते हैं दिल ही बेचते हैं जनाब हम दिल ही दाम रख़ते हैं जो आसमा में रहता है उतरता नहीं हमारे आंगन हम हर रात अर्श से फ़र्श तलक बाम रखते हैं मुहब्बत कीजिये तो कायदे भी तो सीखिये हुज़ूर दुआ ख़ुद करते हैं पर असर उसके नाम रखते हैं तक़सीम करता है वो मगर ठीक से नहीं करता ग़रीब को ग़म मिलते हैं अमीर आराम रख़ते छोटी सोच हो जिसकी उसे छोटा मत कहियेगा ऐसे लोग सुना है के छोटे छोटे इन्तकाम रख़ते हैं न बुलाना चाहो बज़्म में तो न बुलाना तुम हमको ऐसे सामयीन ऐसी बज़्में हम सुबह शाम रख़ते हैं Sandeep Saxena #RDV19