यथार्थ का परिचय कराने का प्रयत्न करती मेरी यह कविता मेरी और उन सभी साहित्यकारों की आवाज है जो संभवतः सम्पूर्ण संसार से यही कहना चाहते होंगे... *त़हरीर मेरी भी* विधा-अतुकांत आज मुफ़लिसी में यहाँ जीता हूँ मैं, कल त़हरीर मेरी भी लिखी जाएगी। कहेंगे लोग उस वक्त ये ज़रूर मगर, हाँ !वाह क्या बहुत खूब लिखते थे वो, उम्र का तकाज़ा है ये जनाब मुझको, पूछते हैं लोग खाक हो जाने के बाद... जब आज हम हैं तो कोई चर्चा नहीं... पर कल यहाँ याद आएंगे बहुत , बस उस आखिरी पर्चा भर जाने के बाद... जन्म दिवस,मरण दिवस भी मनाएंगे वो, समोसे और मिठाइयाँ खिलाएंगे वो.. पहनाएंगे माला पुतले को मेरे.... यहाँ खूब जिन्दाबाद के नारे होंगे, कभी झाँके तक नहीं थे घर में मेरे जो, कल बाईट में घर केवल हमारे दिखाए जाएंगे। जब-जब तीथि यहाँ पर आएगी मेरी.. वो खूब मोमबत्तियाँ जलाएंगे। साल दो साल ,महीने दर महीने , खूब धूल भी यहाँ जमेगी मुझपर.. और तीथियों पर खूब नहलाए जाएंगे हम। कभी नेता,अभिनेता कभी आकर मेरे पुतले के पास.. यहाँ अपनी नायिका,पार्टी सदस्यों के साथ लंबे भाषण भी दे जाएंगे। और उस शून्य में बैठ हम यह सोचते रह जाएंगे, ओह !यहाँ कोई तो आया मेरे खा़क हो जाने के बाद ही सही... ©Bharat Bhushan pathak यथार्थ का परिचय कराने का प्रयत्न करती मेरी यह कविता मेरी और उन सभी साहित्यकारों की आवाज है जो संभवतः सम्पूर्ण संसार से यही कहना चाहते होंगे... *त़हरीर मेरी भी* विधा-अतुकांत आज मुफ़लिसी में यहाँ जीता हूँ मैं, कल त़हरीर मेरी भी लिखी जाएगी। कहेंगे लोग उस वक्त ये ज़रूर मगर, हाँ !वाह क्या बहुत खूब लिखते थे वो, उम्र का तकाज़ा है ये जनाब मुझको,