सुरज अपनी किरणो को बिखेरे अंधेरी निशा से फिर से उषा हुआ था । घोसलो से पंछी फिर निकले थे अपनी नन्ही बच्ची के लिए भोजन की तलाश मे । नदियो का स्वर अब धीमा हो गया था समीर भी मानो आग सा उगलता था । दोपहर वो गलिया सुनी हो गई थी जहाॅ सुबह बच्चो का कलरव था । सुरज ढलता गया फिर शाम ले आया खुशनुमा सा नजारा साथ ले आया। आसमां पर बिखरी चांदनी रात ले आया था ऊष्णता थी चारो ओर , वो र्गीष्म का एक दिन था। #one day of summer