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सुरज अपनी किरणो को बिखेरे अंधेरी निशा से फिर से उष

सुरज अपनी किरणो को बिखेरे
अंधेरी निशा से फिर से उषा हुआ था ।


घोसलो से पंछी फिर निकले थे
अपनी नन्ही बच्ची के लिए भोजन की तलाश मे ।

नदियो का स्वर अब धीमा हो गया था 
समीर भी मानो आग सा उगलता था ।

दोपहर वो गलिया सुनी हो गई थी 
जहाॅ सुबह बच्चो का कलरव था ।

सुरज ढलता गया फिर शाम ले आया 
खुशनुमा सा नजारा साथ ले आया।

आसमां पर बिखरी चांदनी रात ले आया था
ऊष्णता थी चारो ओर , वो र्गीष्म का एक दिन था। #one day of summer
सुरज अपनी किरणो को बिखेरे
अंधेरी निशा से फिर से उषा हुआ था ।


घोसलो से पंछी फिर निकले थे
अपनी नन्ही बच्ची के लिए भोजन की तलाश मे ।

नदियो का स्वर अब धीमा हो गया था 
समीर भी मानो आग सा उगलता था ।

दोपहर वो गलिया सुनी हो गई थी 
जहाॅ सुबह बच्चो का कलरव था ।

सुरज ढलता गया फिर शाम ले आया 
खुशनुमा सा नजारा साथ ले आया।

आसमां पर बिखरी चांदनी रात ले आया था
ऊष्णता थी चारो ओर , वो र्गीष्म का एक दिन था। #one day of summer
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