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आँसू मत बनाओ वेदना को, आग बनाओ। चिल्लाओ नहीं, कल

आँसू मत बनाओ वेदना को, 
आग बनाओ।

चिल्लाओ नहीं, कलपो नहीं, 
संयमित रहकर अपने दर्द को 
अपनी ताक़त बनाओ।

आँसुओं से तो सिर्फ़ गाल गीले होते हैं,

तुम्हें आग चाहिए; 
तुम्हें अपनी बेड़ियाँ पिघलानी हैं।

वही वेदना का सार्थक उपयोग है।

~ आचार्य प्रशांत

©कुमार रंजीत (मनीषी)
  ram singh yadav Deepesh verma BenZil (बैंज़िल) Mohan raj Shahab