यहां देखने को मिलता है कि गुणवान व्यक्तियों के भीतर वे आत्मा को नेता जाने स्वयं पर मुग्ध होने का अवगुण उत्पन्न हो जाता है फिर वह दूसरों के मुख से अपनी प्रशंसा सुनने की लालसा में रहते हैं यहां तक स्वयं की प्रशंसा गान से भी सक्रिय रहते हैं उन्होंने हर समय देना चाहिए कि सूरज स्वयं कहता है कि उसमें कितना तेज है या फिर सागर को यह प्रशन सुनने की अपेक्षा रहती है कि उसमें कितनी गहराई है विचारक नंबर भी सेंड तिल का कहना है हमने से अधिकांश के साथ परेशानी यही है कि हम आलोचना की वजह पर संसद से बर्बाद हो जाते हैं प्रशंसा सुनकर आत्म मुग्ध हो ना घातक है तथा अपने मुंह से अपनी प्रशंसा आत्मघाती होती है वास्तव में तो यही है कि हमारे गुण और अच्छे कर्म इतने सुगंधित होते हैं कि उनके संपर्क में आने वाले व्यक्ति भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता संभव है कि मैं आपके समक्ष आपकी प्रशंसा ना करें परंतु मन ही मन अपनी मुराद हो और उसकी अपनी प्रतिभा और गुणों से प्रेरणा पात्र हो उसके विपरीत कुर्बान होने के बावजूद अपने मुंह से अपने गुणों का व्याख्यान कर कर अपने ही व्यक्तित्व का अवमूल्यन करता रहे ©Ek villain #आत्मघाती आत्ममुग्धता #SunSet