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गृहिणी हूं मैं, फिर भी कोई पूछ ही लेता, तुम करती क

गृहिणी हूं मैं,
फिर भी कोई पूछ ही लेता,
तुम करती क्या हो दिनभर!
(Poetry in Caption)👇


 सुबह मुंह अंधेरे उठ,
सबको भेजने की आपाधापी,
शीशे में एकपल भी,
खुद को निहार ना पाती,
चक्करघिन्नी सी घूमती इधर-उधर,
फिर भी कोई पूछ ही लेता,
तुम करती क्या हो दिनभर!
सुबह नाश्ता,दिन का खाना,
गृहिणी हूं मैं,
फिर भी कोई पूछ ही लेता,
तुम करती क्या हो दिनभर!
(Poetry in Caption)👇


 सुबह मुंह अंधेरे उठ,
सबको भेजने की आपाधापी,
शीशे में एकपल भी,
खुद को निहार ना पाती,
चक्करघिन्नी सी घूमती इधर-उधर,
फिर भी कोई पूछ ही लेता,
तुम करती क्या हो दिनभर!
सुबह नाश्ता,दिन का खाना,