प्रेम उल्फत उंस और प्यार..मोहब्बत के तो चंद शब्द ये चार.. सल्तनत है गिरी कई..कईयों ने पाई हार.. इतिहास मुकर्रर है अंकीत,बयां ना हो,बस लफजो में चार है सीताभंजन में रामका कीतना प्यार दर दर समंदर..सेतु बने..लंका पार.... नाईलाज है ये रोग..कुछ ऐसा है इसका सार, ढाई अक्षर की जुबां..एक जान और इकरार.. बेजुबानों की है ज़ुबानी..गाथा ये वेदोंपुरानी.. कतलेआम जान कही,धुत मयखानों में जाम कई ज़िक्रे-मोहब्ब्त कर लो.. क्यू ये इनकार.. रहैमत है खुदा की..चख तो ले एक बार! प्रेम उल्फत उंस और प्यार..मोहब्बत के तो चंद शब्द ये चार.. जिक्रे- मोहब्बत!