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काश!मैं न उनसे मिला होता, न इश्क़ की तमन्ना होती सा

काश!मैं न उनसे मिला होता, न इश्क़ की तमन्ना होती
सारा जमाना साथ होता ,एक वो जो मुझसे दूर होती
मन व्यथित हो उठता , अब वो हिज़्र की जो जिक्र करती
 चुमता मैं न उनके सुर्ख होठों को, न वो मेरी रूह तक उतरती
हर राज मैं छुपा लेता गर थोड़ी सी वो मासूम होती 
दिल में चुभन सी होती है, वो गैरों से हँसकर जब बातें करती
नामुमकिन सा लगता उनके शहर से रुखसत होना,
अब यहाँ हर शाम सुरमयी लगती है।
काश!उनसे  मुलाकात न होती,मोहब्बत को वो इकरार न करती
ज़माने से दोस्ती होती,एक वो जो अनजानी होती
वो मेरी अमानत हो जाएँ अब ऐसी कुछ मेरी दुआए होती
दिल को सूकून मिलता जब वो मोहब्बत की बातें करती
मैं गीत गाये फिरता हूँ जब वो मनचली सी पायल खनखाती
हसीन तरीन सी लगती वो, माथे पर जब एक बिन्दी लगाती
सब कुछ मैं उनसे कह पाता ,कुछ ऐसा मेरा मिजाज होता
महफूज़ रखूँ मैं उनको,वो माँग सजाने की इजाजत देती
गर्दिश में मैं जब भी होता ,प्यार से वो गले लगाती
मालूम न चले सहर की ,कुछ ऐसी हमारी रात गुजरती।
-भास्कर बेदी इश्क़ सुफियाना मेरा
काश!मैं न उनसे मिला होता, न इश्क़ की तमन्ना होती
सारा जमाना साथ होता ,एक वो जो मुझसे दूर होती
मन व्यथित हो उठता , अब वो हिज़्र की जो जिक्र करती
 चुमता मैं न उनके सुर्ख होठों को, न वो मेरी रूह तक उतरती
हर राज मैं छुपा लेता गर थोड़ी सी वो मासूम होती 
दिल में चुभन सी होती है, वो गैरों से हँसकर जब बातें करती
नामुमकिन सा लगता उनके शहर से रुखसत होना,
अब यहाँ हर शाम सुरमयी लगती है।
काश!उनसे  मुलाकात न होती,मोहब्बत को वो इकरार न करती
ज़माने से दोस्ती होती,एक वो जो अनजानी होती
वो मेरी अमानत हो जाएँ अब ऐसी कुछ मेरी दुआए होती
दिल को सूकून मिलता जब वो मोहब्बत की बातें करती
मैं गीत गाये फिरता हूँ जब वो मनचली सी पायल खनखाती
हसीन तरीन सी लगती वो, माथे पर जब एक बिन्दी लगाती
सब कुछ मैं उनसे कह पाता ,कुछ ऐसा मेरा मिजाज होता
महफूज़ रखूँ मैं उनको,वो माँग सजाने की इजाजत देती
गर्दिश में मैं जब भी होता ,प्यार से वो गले लगाती
मालूम न चले सहर की ,कुछ ऐसी हमारी रात गुजरती।
-भास्कर बेदी इश्क़ सुफियाना मेरा