रक्त रंजिश, प्रवाह विरंजित धर्म अपना, क्या कोई बैर है वक्त चलता,दौर बनता क्या सिर्फ मतलब को बनता इंसान सिरमौर है, बिन अवरोध चलता जाता, रस्म चक्र ये कुरीति का धर्म,मजहब,भेद तंत्र बैठा है यहीं