जो सतगुरू शरणी ना आवे । वे नर भाग्यहीन जग माँहीं, माया रागें गावें ।।टेर।। माया तो है छाया पुरूष की, कभी न स्थिर रह पावे । जो कोई उसके पीछे धावे, खाली हाथ रह जावे (1) माया कभी न संग निभावे, वक़्त पड़े बदलावे । जाते वक़्त दे ऐसी लातें, कभी न उठने पावे (2) जो कोई सतगुरू शरणी आवे, स्वामी उसे अपनावें । चार जन्म तक साथ निभा, अपने पद में पहुँचावे (3) ऐसे सच्चे संगी पा, जो उनसे दूर रहावे । उलटा पात्र भाग्यों का कर, वो उसको भरना चाहे (4) राधास्वामी परम पिता है सच्चा, सतगुरू तन प्रगटावें । दीन अंग जो शरणी आवे, उसको पार लगावें (5) *राधास्वामी* राधास्वामी प्रीति बानी-4-44 माया छाया एक सी ।