"चिताओं का मतदान" हम भी उसी देश में है जहाँ से न जाने कितने निश्छलों के शव श्मशान घाट की ओर जा रही है कोई हवा,कोई बेड़,कोई दवा के बिना मर रहे है सैकड़ों गुनी महंगी ईलाज के अभाव में न जाने कितने निश्छलों की मौत अस्पतालों के सामने,घरों में और अपनी वाहनों में हो रही है ये मतदान भी न जाने कितने चिताओं से श्मशान घाट को रौशन कर रही है इस विकराल महामारी में लोगों को मेला और चुनावी रैलियों में लाखों की भीड़ बुलाई जा रही है रैली के बाद रात में प्रधानमंत्री जी द्वारा टीवी पर सबको "दो गज दूरी,मास्क है जरूरी" की बातें बताई जा रही है ये मतदान भी न जाने कितनी चिताओं से श्मशान घाट को रोशन कर रही है न जाने कितने मां–बाप के बुढ़ापे का सहारा छीन रही हैं न जाने कितने निश्छलों के जीवन में अंधियारा कर रही है एम्बुलेंस की अतिरिक्त कीमतों के अभाव में न जाने कितने निश्छल, अपनों की लाशें साईकल,ठेला और ई–रिक्शा से ले जा रहे है हम भी उसी देश में है जहाँ से न जाने कितने निश्छलों के शव श्मशान घाट की ओर जा रही है मानवों में मानवता क्षीण होते जा रही है अन्तिम संस्कार के वस्तुओं के अतिरिक्त दाम उगाही की जा रही है अपनों के जलाने के लिए श्मशान घाट में खुद से सैय्या बनाई जा रही है खुद से संक्रमित शव को सैय्या पर रखकर अग्नि दी जा रही है हम भी उसी देश में है जहाँ से न जाने कितने निश्छलों के शव श्मशान घाट की ओर जा रही है पी.निश्चल...✍️ ©P. Nishchal #चिताओं_का_मतदान