पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष वनराज। अबकी बिछुडे कब मिलेंगे,दूर पडे हैं आय। ₹ तरुवर बोला पात से, सुनो पात मम बात। या जग की यह रीत है, इक आवत इक जात। आचार्य रविकान्त जी शास्त्री श्री अयोध्या जी