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sunset nature आंसू लिखे ही हैं मुकद्दर में मेरे,

sunset nature आंसू लिखे ही हैं मुकद्दर में मेरे,  तो क्यू खुश होने के ख्वाब देखती हूं।।
 जब बेरंग हो चुकी हैं जिंदगी, तो क्यूं सपनो में रंग भरती हूं।।
हमेशा उलझी हुई रहती हूं, जैसे खुद से ही एक जंग रोज करती हूं।।
शायद वो दुनियां ख्वाब हैं,जिसमे रोज खुद को देखती हूं।।
क्यूं लड़ूं खुद से जब ये जंग ही बेवजह हैं, शायद रहना हैं बही, जो मेरी जगह हैं।।
कभी कभी बस खामोश रहना चाहती हूं, 
 दुनियां के हर सख्स से दूर, बस खुद में जीना चाहती हूं..✍️

©ankahi kahani
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