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एक दिन बैठा मैं छत पर अपनी,देख दूर एक पेड़ खड़ा था।

एक दिन बैठा मैं छत पर अपनी,देख दूर एक पेड़ खड़ा था।
भूरे पत्तों को लहराता,अभिमानी वो वहाँ खड़ा था।

अपनी भाषा में बोल रहा कुछ,समझ सका न, बूझ सका मैं।
कहने को थी दो आँखें मेरी,देख सका न जान सका मैं।

अगले दिन उठकर गया वहाँ पर,निर्मम हालत, विश्वास नहीं।
सूखे थे पत्ते, सूखी डालें,बचने की अब कोई आस नहीं।

बोला मेरा अब अंत ही बचा,एक काम मेरा जो, मुझे बताना।
ये लकड़ी, पत्ते, शाखें मेरी,काट इन्हें तू आग लगाना।
होगी फिर जो कुछ राख़ इधर पर,
जो मरने वाले उन्हें लगाना।।
जो मरने वाले उन्हें लगाना।। #NojotoQuote राख़।
hindikavitakoshblog.blogspot.com
एक दिन बैठा मैं छत पर अपनी,देख दूर एक पेड़ खड़ा था।
भूरे पत्तों को लहराता,अभिमानी वो वहाँ खड़ा था।

अपनी भाषा में बोल रहा कुछ,समझ सका न, बूझ सका मैं।
कहने को थी दो आँखें मेरी,देख सका न जान सका मैं।

अगले दिन उठकर गया वहाँ पर,निर्मम हालत, विश्वास नहीं।
सूखे थे पत्ते, सूखी डालें,बचने की अब कोई आस नहीं।

बोला मेरा अब अंत ही बचा,एक काम मेरा जो, मुझे बताना।
ये लकड़ी, पत्ते, शाखें मेरी,काट इन्हें तू आग लगाना।
होगी फिर जो कुछ राख़ इधर पर,
जो मरने वाले उन्हें लगाना।।
जो मरने वाले उन्हें लगाना।। #NojotoQuote राख़।
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jatinjoshi2727

jatin joshi

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